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संविधान सभा के सदस्यों ने जन प्रतिनिधि की हैसियत से, संविधान के प्रत्येक प्रावधान पर चर्चा और बहस की। वे साधारण लोग नहीं थे। उनमें से अनेक सदस्य कानून के क्षेत्र में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा चुके थे, अनेक सदस्य अपने-अपने क्षेत्र के प्रतिष्ठित विद्वान थे और कुछ तो दार्शनिक भी थे।