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आलस्य सुखरूप प्रतीत होता है पर उसका अंत दुःख है तथा कार्यदक्षता दुखःरूप प्रतीत होती है पर उससे शाश्वत आत्मसुख की यात्रा हो जाती है । ऐश्वर्य, लक्ष्मी, लज्जा, धृति ओर कीर्ति – ये कार्यदक्ष पुरुष में ही निवास करती हैं, आलसी में नहीं । - संत श्री #आशारामजी बापू https://t.co/75pipnNp1N